नई दिल्ली। नासा के जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) के वैज्ञानिक अंटार्कटिका की बर्फीली चादरों के नीचे के डेटा को समझने के लिए उन्नत रोबोट विकसित कर रहे हैं। इस परियोजना का उद्देश्य बर्फ के पिघलने की दर को मापना और समुद्र स्तर में संभावित वृद्धि के पूर्वानुमानों को अधिक सटीक बनाना है।
आइसनोड परियोजना का परिचय
JPL की आइसनोड (IceNode) परियोजना के तहत बेलनाकार रोबोट बनाए जा रहे हैं, जो लगभग 8 फीट लंबे और 10 इंच व्यास के हैं। ये रोबोट महासागर की धाराओं का उपयोग कर अंटार्कटिका के “ग्राउंडिंग जोन” तक पहुंचेंगे। यह वह क्षेत्र है जहां बर्फ की चादर समुद्र के खारे पानी और जमीन से मिलती है, लेकिन इसे उपग्रह से देख पाना संभव नहीं है।
कार्य प्रणाली और उद्देश्य
बर्फ के नीचे पहुंचने के बाद, ये रोबोट अपने वजन को छोड़कर “लैंडिंग गियर” के जरिए बर्फ की चादर से जुड़ जाएंगे। यह रोबोट एक साल तक बर्फ के नीचे मौसमी उतार-चढ़ाव का डेटा रिकॉर्ड करेंगे और फिर खुद को आजाद कर समुद्र की धाराओं के साथ बहते हुए उपग्रहों के जरिए जानकारी भेजेंगे।
महत्व और संभावनाएं
1997 से अब तक अंटार्कटिका की बर्फ का लगभग 120 खरब टन द्रव्यमान खत्म हो चुका है। यदि पूरी बर्फ पिघलती है, तो वैश्विक समुद्र स्तर में 200 फीट तक की वृद्धि हो सकती है। आइसनोड्स द्वारा एकत्रित डेटा वैज्ञानिकों को समुद्र स्तर में संभावित वृद्धि का बेहतर पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा।
नासा की यह परियोजना पृथ्वी के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में विज्ञान उपकरणों को पहुंचाने और महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। इससे जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को समझने में नई संभावनाएं खुलेंगी।